IISGNII गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः

Madhushala: Durlabh Chitron Sahit

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मधुशाला के गौरवशाली 75 साल हिन्दी गीति-काव्य के महान कवि बच्चन की ‘मधुषाला’ ने 75वें वसन्त की भीनी और मोहक गन्ध के बीच मदभरा स्वप्न देख लिया। स्वप्न ऐसा कि जो भविष्य की ओर इंगित करता है कि अभी और बरसेगा मधुरस और पियेंगे अभी पाठकगण, युगों-युगों तक याद रहेगी ‘मधुशाला’। रस भीनी मधुरता में डूबी यह वह ‘मधुशाला’ है, जिसने पहला वसन्त 1935 में देखा और अब तक कई पीढि़़यों ने इसका रसपान किया। ‘मधुशाला’ की एक-एक रुबाई पाठक के रागात्मक भावों को जगाकर उसके कोमल और एकान्तिक क्षणों को अद्भुत मादकता में रसलीन कर देती है। स्वर्ण जयन्ती के अवसर पर बच्चन जी द्वारा लिखी गई चार नई रुबाइयां भी पुस्तक में शामिल कर ली गई हैं।


Product details

  • Paperback: 160 pages
  • Publisher: HIND POCKET BOOK (HINDI); 10 edition (2008)
  • Language: Hindi
  • ISBN-10: 8121601258
  • ISBN-13: 978-8121601252
  • Package Dimensions: 20.1 x 13 x 1.3 cm

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